प्रयागराज। तीर्थराज प्रयाग में संगम की रेती पर चल रहे माघ मेले का अगला प्रमुख स्नान पर्व बसंत पंचमी है। यह पर्व इस बार गणतंत्र दिवस 26 जनवरी को होगा और श्रद्धालु चार शुभ योग में संगम समेत अन्य स्नान घाटों पर पूण्य की डुबकी लगाएंगे।
मेले का मुख्य स्नान पर्व मौनी अमावस्या सकुशल बीत जाने के बाद मेला प्रशासन ने राहत की सांस ली है और अधिकारी अब बसंत पंचमी के स्नान को लेकर तैयारी करने लगे हैं। हालांकि बसंत पंचमी को मौनी अमावस्या जैसी भीड़ नहीं होती है, फिर भी मेला प्रशासन ने कर्मचारियों को अभी से अलर्ट कर दिया है। चूंकि इस बार बसंत पंचमी का पर्व गणतंत्र दिवस के दिन पड़ रहा है और उस दिन मौसम के भी अनुकूल रहने की संभावना है, इसलिए मेला प्रशासन कुछ ज्यादा ही चौकन्ना है।
प्रशासन का मानना है कि जो स्नान घाट और अन्य व्यवस्थाएं मौनी अमावस्या पर थे, वही बसंत पंचमी पर भी बरकरार रहेंगी। मेला क्षेत्र में वाहनों का प्रवेश पर्व के एक दिन पहले से प्रतिबंधित हो जाएगा।
उदया तिथि पर 26 जनवरी को होगा बसंत पंचमी का स्नान
ज्योतिर्विद डा. ओम प्रकाशाचार्य के अनुसार बसंत पंचमी की तिथि 25 जनवरी को अपराह्न 12ः38 बजे प्रारंभ हो जाएगी और अगले दिन 26 जनवरी को पूर्वाह्न 10ः38 बजे तक रहेगी। उन्होंने बताया कि शास्त्रों के अनुसार पर्व उदया तिथि में ही मनाया जाता है, इसलिए बसंत पंचमी का स्नान 26 जनवरी को ही है।
डा. ओम प्रकाशाचार्य कहते हैं कि इस बार बसंत पंचमी पर चार शुभ योग- शिव योग, सिद्ध योग, सर्वार्थ सिद्ध योग और रवि योग बन रहे हैं। इससे बसंत पंचमी का विशेष महत्व है।
बसंत पंचमी पर मां सरस्वती की भी होती है पूजा
दरअसल बसंत पंचमी का पर्व ज्ञान, विद्या, कला और संगीत की देवी मां सरस्वती को समर्पित है। पौराणिक शास्त्रों के अनुसार इस दिन मां सरस्वती हांथों में वीणा, पुस्तक और माला लिए हुए श्वेत कमल पर विराजमान होकर प्रकट हुई थीं। इसलिए इस दिन उनकी पूजा होती है। डा. ओम प्रकाशाचार्य बताते हैं कि इस बार बसंत पंचमी गुरुवार को है और गुरुवार का दिन देव गुरु बृहस्पति का होता है, जो ज्ञान के कारक हैं।
उन्होंने बताया कि गुरुवार के चलते इस बार बसंत पंचमी पर एक और विशेष संयोग बन रहा है। इस दिन देव गुरु बृहस्पति अपने मित्र चंद्रमा के साथ अपनी ही राशि मीन में गजकेसरी योग का निर्माण भारत की कुंडली में कर रहे हैं। ऐसे में इस बार की बसंत पंचमी विशेष फलदाई होगी। यह संयोग देश के सुख, शांति और समृद्धि के लिए शुभकर है। गुरु शिष्य परम्परा के लिए भी बसंत पंचमी का विशेष महत्व है। इस दिन गुरुओं की भी वंदना की जाती है।
बसंत पंचमी से ही बसंत ऋतु की होती है शुरुआत
बसंत पंचमी के दिन से ही बसंत ऋतु की भी शुरुआत होती है और सर्दी में कमी आने लगती है। खेतों में लहलहाती सरसों से सुगंध बरसती है। शास्त्रों के अनुसार बसंत पंचमी के दिन विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन, भवन निर्माण और अन्य मांगलिक कार्य भी किए जाते हैं।