डॉक्टर बनने का टूटा सपना, बन गए संत

Hamirpur। बुंदेलखंड की जमी से एक शख्स की बड़े संत बनने की कहानी बड़े ही हैरान करने वाली है। डॉक्टर बनने के लिए बीएससी में दाखिला लिया, लेकिन कॉलेज प्रबंधन ने उन्हें एग्जाम देने पर रोक लगाई तो छात्र जीवन में ही उन्होंने बैरागी जीवन जीने का ऐसा फैसला लिया कि आज उनके सत्संग सुनने के लिए बड़ी संख्या में लोगों का तांता लगता है। बीच में पढ़ाई छूटने के बाद घर छोड़ा और कड़ी साधना करने के लिए जंगल निकल गए। अब ये दंडी स्वामी महेश्वरानंद सरस्वती महाराज के नाम से पहचाने जाते हैं।

दंडी स्वामी महेश्वरानंद सरस्वती के पिता फतेहपुर जिले के रहने वाले थे। इनका जन्म हमीरपुर जिले के इंगोहटा गांव में हुआ था। बचपन गांव में खेलकूद में बिताया। मौदहा के नेशनल इंटर कॉलेज में इंटरमीडिएट तक पढ़ाई की फिर ये बीएससी की पढ़ाई करने के लिए उन्नाव चले गए। किराए के मकान में रहकर इन्होंने बीएससी की पढ़ाई की। लेकिन फाइनल एग्जाम ये नहीं दे पाए। क्योंकि कॉलेज प्रबंधन ने उन्हें एग्जाम देने से रोक दिया था। बस यहीं से इन्होंने घर छोड़ने का फैसला किया। बैराग जीवन जीने के लिए राजस्थान के मंदसौर चल गए, जहां जंगल में कड़ी साधना की।

कई सालों तक कुटिया बनाकर ये नदी किनारे साधना करते रहे। ये नदी का पानी ही पीकर काम चलाते थे। दंडी स्वामी ने बताया कि इनकी जन्मकुंडली ऐसे महा विद्धान ने बनाई थी, जिसमें लिखी गई सारी बातें सच निकली है। पढ़ने लिखने का बड़ा शौक होने के बावजूद डॉक्टर बनने का सपना फिलहाल साकार नहीं हो पाया, लेकिन आज जिस रास्ते पर जीवन का सफर जारी है उसमें श्रीनारायण की बड़ी कृपा है।

दंडी स्वामी महाराज कन्नौज राजस्थान समेत तमाम स्थानों पर महायज्ञ और रामकथा कह चुके हैं। अब हमीरपुर शहर के ऐतिहासिक पातालेश्वर मंदिर में ये श्री शक्ति शिवात्मक महायज्ञ और रामकथा का आयोजन कराने की तैयारी कर रहे हैं। नौ दिवसीय महायज्ञ और रामकथा का आयोजन 24 जून से प्रारम्भ होगा।

बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर खुद करते थे बीएससी की पढ़ाई

दंडी स्वामी महेश्वरानंद सरस्वती ने बताया कि उनकी पढ़ाई लिखाई में माता पिता से कोई सहयोग नहीं मिला। यहां तक गुरुओं से भी कोई सहयोग नहीं मिला। जन्मकुंडली में भी ये लिखा था कि इसके जीवन में माता—पिता और गुरु का सहयोग नहीं मिलेगा। पढ़ाई भी बीच में अधूरी रह जाएगी। बताया कि बीएससी की पढ़ाई के लिए बच्चों को ट्यूशन पढ़ाया गया। अभावग्रस्त जीवन में भी सारे सपने दिल में रह गए। इसीलिए गृहस्थ जीवन छोड़ बैराग लेना पड़ा।

28 साल की उम्र में ही कठिन साधना कर बन गए थे संत

दंडी स्वामी 28 साल की उम्र में संत बन गए थे। उन्होंने बताया कि पढ़ने लिखने की उम्र में जंगलों में साधना की फिर रोटीराम बाबा के सानिध्य में आकर उन्हें गुरु बनाया। बताया कि उत्तर भारत के संत रोटीराम बाबा की हत्या होने से उन्हें बहुत दु:ख हुआ। बताया कि दंडी स्वामी बनने के बाद पिछले कई दशकों से यज्ञ और रामकथा कर एक स्वस्थ समाज बनाने का प्रयास जारी है। कहा कि ऐसे धार्मिक आयोजन से लोगों में धर्म के प्रति आस्था भी बढ़ रही है।

बैराग लेने के बाद छोड़ी लाखों रुपये की अचल सम्पत्ति

दंडी स्वामी महेश्वरानंद सरस्वती महाराज के शिष्यों ने बताया कि स्वामी जी ब्रह्मचारी है। जिन्होंने अपनी लाखों रुपये की चल और अचल सम्पत्ति भी छोड़ दी। अब इनकी सम्पत्ति पर परिवार के लोग ही राज करते हैं। बताया कि इनके पिता छत्तीसगढ़ में एक अधिकारी के पद पर तैनात थे। स्वामी जी इकलौते पुत्र थे जो विज्ञान वर्ग के छात्र थे। बीएससी की पढ़ाई छूटने के बाद ये समाजसेवा के लिए संत बन गए। इन्हें किसी ने जहर भी दिया था, लेकिन इनका कुछ नहीं बिगड़ा।

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