कुम्हारों के ”आर्थिक समृद्धि” का द्वार खोलेगी ”दीपावली”

गोरखपुर। हिन्दू धर्म में दीपावली महापर्व की काफी महत्ता है। य़ह एक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत को संजोने वाला महापर्व है। प्रदेश में योगी सरकार बनने के बाद इसने एक नई ऊंचाई प्राप्त की है। श्रीराम की नगरी अयोध्या में शुरू होने वाले दीपोत्सव से न सिर्फ श्रीराम की नगरी अयोध्या के आसपास इलाकों में कुम्हार द्वारा तैयार मिट्टी के दीपक की डिमांड बढ़ी है बल्कि गोरखपुर मंडल में भी इसकी मांग परवान चढ़ी है। इससे कुम्हारों को आर्थिक संबल मिलना शुरू हो गया है।

योगी सरकार द्वारा शुरू किया गया ”दीपोत्सव” अयोध्या की समृद्धशाली अतीत को अब गौरवशाली बना रहा है। यह सिर्फ आध्यात्मिक और सांस्कृतिक आयोजन तक ही नहीं सिमटा है। अब इसका दायरा बढ़ रहा है। यह कुम्हारो को आर्थिक संबल भी देने लगा है। कुम्हारों के घरों में समृद्धि का दीप भी जला रहा है।

अब इन्हें अपने परंपरागत कार्य में आर्थिक संबल दिखने लगा है। ग्रामीण क्षेत्रों में भी कुम्हारों ने मिट्टी के गणेश-लक्ष्मी, कुबेर और हनुमान की मूर्तियां बनानी शुरू कर दी हैं। इनकी बनाई गई मिट्टी के सामानों से दुकानें सजने लगी हैं। अब यही सामान कुम्हारों के आर्थिक पक्ष को मजबूत करेंगी। दीपावली में जलाए जाने वाले दीपक से इनके जीवन में छाया हुआ अंधेरा, उजियारा में तब्दील होगा।

दो वर्ष रहा कोरोना का साया

दो वर्ष तक कोरोना काल की वजह से बाजारों में दुकानें नहीं लग पाई थीं, लेकिन इस बार कुम्हारों के हाथों से बने मिट्टी के गणेश-लक्ष्मी, कुबेर, हनुमान आदि की मूर्तियां बाजारों में आने लगीं हैं। दुकानें सजने लगीं हैं और दीपावली इनके जीवन में खुशियां घोलने को तैयार हो चुकी है।

क्या कहते हैं कुम्हार

औरंगाबाद के टेराकोटा मूर्ति कलाकार लक्ष्मीचंद प्रजापति का कहना है कि दीपावली पर भगवान की मूर्तियों से होने वाली आय से साल भर परिवार के जीवन का अब भरण-पोषण होने लगा है। इस बार दीपावली में ज्यादा खुशियां हैं। मूर्ति बनाने के ऑर्डर इस वर्ष ज्यादा मिले हैं। पिछले वर्ष यह कारोबार थोड़ा मंदा रहा।

कुशीनगर के रामायण प्रजापति का कहना है कि इस वर्ष दीपावली मनाने में लोगों की कुछ रुचि बढ़ी है। यह हम जैसे कुम्हारों के लिए काफी लाभदायक है। हमारे बनाए गए मिट्टी के बर्तन, गणेश-लक्ष्मी व खिलौने आदि सामानों की बिक्री बढ़ने की उम्मीद है।

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