Ranchi। भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव ने मंगलवार को झामुमो के प्रेस कॉन्फ्रेंस पर पलटवार करते हुए कहा कि झामुमो सिर्फ चुनाव के समय आदिवासी, मूलवासी, एससी, एसटी और पिछड़ा वर्ग के लिए घड़ियाली आंसू बहाती है। प्रतुल ने कहा कि यदि झामुमो पिछड़ों के आरक्षण के लिए गंभीर थी तो उसने पंचायत चुनाव बिना पिछड़ों के आरक्षण के क्यों करवा लिया? वह तो नगर निकाय चुनाव भी बिना पिछड़ों को आरक्षण दिए करने जा रही थी लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के फटकार के बाद ये रुका।
प्रतुल ने कहा कि झामुमो ने सवा चार वर्षों के बाद भी पिछड़ों की आरक्षण सीमा को बढ़ाने के लिए ट्रिपल टेस्ट की शुरुआत तक नहीं की। यही इनकी असलियत को दर्शाता है। प्रतुल ने कहा कि ये सरकार सवा चार वर्षों से शासन कर रही है लेकिन 1932 उनके लिए एक चुनावी झुनझुना से ज्यादा कुछ नहीं रहा है। प्रतुल ने कहा कि 1932 के खतियान को यह सिर्फ एक सरकारी संकल्प से जारी कर सकते थे लेकिन इन्होंने विधानसभा भेज कर लटकाने का काम किया। हाल में ली गई जूनियर इंजीनियर की परीक्षाओं में 70 प्रतिशत झारखंड से बाहर के उम्मीदवारों की इसी हेमंत सोरेन पार्ट-2 सरकार के कार्यकाल में नियुक्ति हुई। यही इनका स्थानीयता प्रेम को एक्सपोज करता है।
प्रतुल ने कहा कि भाजपा दर्जनों बार अपना स्टैंड क्लियर कर चुकी है कि वह हजारों वर्षों से अपनी मूल परंपरा को जीवित रखने वाले आदिवासियों को हक देने के लिए उठाए जाने वाले हर कदम का साथ देगी लेकिन जिस सरकार को आर्च बिशप ने क्रिसमस गिफ्ट बताया था, उनसे यहां के अपनी परंपरा को हजारों वर्षों से जीवित रखने वाले आदिवासियों के हित में कुछ अपेक्षा नहीं हो सकती।
प्रतुल ने कहा कि आज तो झामुमो का कांग्रेस के साथ गठबंधन में है। कांग्रेस के एक प्रमुख नेता बाबा कार्तिक उरांव जी ने तो लोक सभा में प्राइवेट मेंबर्स बिल (अनुसूचित जाति जनजाति आदेश संशोधन विधेयक 1967) लाकर धर्म बदलने वाले अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्यों को आरक्षण से बाहर करने का प्रस्ताव किया था। इस मुद्दे पर संसद की संयुक्त समिति के सकारात्मक टिप्पणी के बावजूद इस विधेयक का विरोध करने के लिए प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली तत्कालीन कांग्रेस की सरकार ने व्हिप तक जारी किया था।
प्रतुल ने कहा कि इस सरकार का एससी समुदाय विरोधी नजरिया इस बात से स्पष्ट हो जाता है कि पिछले दो वर्षों से इस सरकार के कैबिनेट में एक भी एससी समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाला मंत्री मौजूद नहीं है। यही इनकी कथनी और करनी का अंतर है। प्रतुल ने कहा कि यह सरकार आदिवासी मूलवासियों को मुख्य धारा से बिल्कुल भी नहीं जोड़ना चाहती है और उन्हें सिर्फ वोट बैंक बनाकर रखना चाहती है जबकि भाजपा सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास के फार्मूले पर चलती है।