बाबा बैद्यनाथ मंदिर में “पंचशूल” के स्पर्श मात्र से ही पूर्ण हो जाती है मनोकामना

देवघर।देवघर जिला स्थित रावणेश्वर बाबा वैद्यनाथ धाम ज्योतिर्लिंग सभी 12 ज्योर्तिपीठों से अलग महत्व रखता है। देश के अन्य ज्योतिर्लिंगों में दर्शन पूजा का विधान है। वहीं बैद्यनाथ धाम अपने-आप में अलग मान्यताओं के कारण जाना जाता है। शास्त्रीय विद्वान बताते हैं कि यहां ज्योतिर्लिंग के स्पर्श पूजा का विधान प्रचलित है। कहते हैं इस ज्योतिर्लिंग को स्पर्श कर पूजा किया जाता है “पंचशूल” के स्पर्श मात्र से ही भक्तों की हरेक मनोकामना पूर्ण होती है, जिस कारण इसकी संज्ञा मनोकामना ज्योतिर्लिंग की है।

शास्त्रीय विद्वानों ,धर्माचार्यों का कहना है कि शिवपुराण में ज्योतिर्लिंग की पूजा का महत्व बताया गया है जिसमें कहा गया है कि कोई अगर छह महीने तक लगातार शिव ज्योतिर्लिंग की पूजा करता है, तो उसे पुनर्जन्म का कष्ट नहीं उठाना पड़ता। बैद्यनाथ मंदिर के शीर्ष पर लगे पंचशूल के विषय में धर्म के जानकारों का अलग-अलग मत है। एक मत है कि त्रेता युग में रावण की लंकापुरी के द्वार पर सुरक्षा कवच के रूप में भी पंचशूल स्थापित था।

मंदिर के तीर्थ पुरोहित बताते हैं कि धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि रावण को पंचशूल यानी सुरक्षा कवच को भेदना आता था, जबकि यह भगवान राम के वश में भी नहीं था। भगवान राम को विभीषण ने जब युक्ति बताई, तभी श्रीराम और उनकी सेना लंका में प्रवेश कर सकी थी। शास्त्रीय विद्वान बताते हैं कि पंचशूल के सुरक्षा कवच के कारण ही बाबा बैद्यनाथ स्थित इस मंदिर पर आज तक किसी भी प्राकृतिक आपदा का असर नहीं हुआ है।

पंडितों का कहना है कि पंचशूल का दूसरा कार्य मानव शरीर में मौजूद पांच विकार-काम, क्रोध, लोभ, मोह व ईर्ष्या का नाश करना है। पंडित राधा मोहन मिश्र ने इस पंचशूल को पंचतत्वों-क्षिति, जल, पावक, गगन तथा समीर से बने मानव शरीर का द्योतक बताया। मंदिर के पंडों के मुताबिक, मुख्य मंदिर में स्वर्ण कलश के ऊपर लगे पंचशूल सहित यहां के सभी 22 मंदिरों पर लगे पंचशूलों को साल में एक बार शिवरात्रि के दिन नीचे उतार लिया जाता है और सभी को एक निश्चित स्थान पर रखकर विशेष पूजा-अर्चना कर पुनः स्थापित कर दिया जाता है।

इस दौरान शिव और पार्वती के मंदिरों के गठबंधन को भी हटा दिया जाता है। लाल कपड़े के दो टुकड़ों में दी गई गांठ खोल दी जाती है और महाशिवरात्रि के दिन फिर से नया गठबंधन किया जाता है। गठबंधन वाले पुराने लाल कपड़े के दो टुकड़ों को पाने के लिए हजारों भक्त यहां एकत्रित होते हैं।

पंचशूल को मंदिर से नीचे लाने और फिर ऊपर स्थापित करने का अधिकार एक ही परिवार को प्राप्त है।वैद्यनाथ धाम मंदिर के प्रांगण में वैसे तो विभिन्न देवी-देवताओं के 22 मंदिर हैं, लेकिन बीच में स्थित शिव का भव्य और विशाल मंदिर कब और किसने बनाया, यह शोध का विषय माना जाता है। मध्य प्रांगण में 72 फीट ऊंचे शिव मंदिर के अलावा अन्य 22 मंदिर स्थापित हैं। इसी प्रांगण में एक घंटा, एक चंद्रकूप और प्रवेश के लिए विशाल सिंह दरवाजा बना हुआ है। लंकाधिपति रावण द्वारा स्थापित इस मनोकामना लिंग की संज्ञा रावणेश्वर बाबा बैद्यनाथ धाम की भी है। श्रावण माह में यहां विश्व का सबसे लंबा मेला भी लगता है, जो 105 किलोमीटर दूर उत्तरवाहिनी मंदाकिनी से कांधे पर जल लेकर बाबा बैद्यनाथ का जलाभिषेक करते हैं। यह परंपरा भगवान श्री राम से जुड़ा है।

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