अभी नहीं मिलेगी हार कंपाती ठंड से राहत, किसानों के लिए जारी की गई एडवाइजरी

बेगूसराय। भीषण शीतलहर ने बेगूसराय सहित पूरे उत्तर बिहार को चपेट में ले लिया है। तापमान लगातार गिरता जा रहा है। चौथे दिन गुरुवार को भी सूर्य देव के दर्शन नहीं हुए, जिसके कारण कंपकंपी काफी बढ़ गई है, अभी अगले तीन दिनों तक इससे राहत मिलने की कोई संभावना नहीं है।

डॉ. राजेन्द्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के मौसम विभाग द्वारा दिए गए सूचना के अनुसार फिलहाल आठ जनवरी तक इस कंपकंपी से राहत मिलने की कोई संभावना नहीं है। आठ से 12 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से पछुआ हवा चलती रहेगी, जिसके कारण लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ेगा। पड़ रही भीषण ठंड के कारण लोगों का घर से निकलना मुश्किल हो गया है। प्रशासनिक स्तर पर 125 से अधिक जगहों पर अलाव जलाए जा रहे हैं तथा तमाम लोग अपने-अपने घर में आग जलाकर और रजाई-कंबल के सहारे ठंड से दूर रहने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन ठंड का सितम जारी है तथा मौसम में हुए बदलाव से एक ओर मरीजों की संख्या बढ़ रही है।

भीषण ठंड के कारण गरीब-मजदूर और पशुपालन एवं किसानों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। अभी अधिकतम तापमान और न्यूनतम तापमान में और गिरावट होने की संभावना है। प्रशासन लोगों को ठंड से बचने के लिए लगातार अलर्ट कर रही है तो कृषि विश्वविद्यालय के ग्रामीण कृषि मौसम सेवा द्वारा किसानों के लिए एडवाइजरी जारी किया गया है।

बेगूसराय स्थित कृषि विज्ञान केंद्र खोदावंदपुर के वरीय वैज्ञानिक और प्रधान डॉ. रामपाल ने बताया कि आठ जनवरी तक के पूर्वानुमान अवधि में आसमान साफ तथा मौसम शुष्क रहने का अनुमान है। वातावरण में अधिक नमी तथा पछुआ हवा चलने के कारण पिछले दो दिनों से कोल्ड डे की स्थिति बनी हुई है। ठंड का प्रकोप जारी रहने की संभावना है। अधिक नमी तथा सामान्य से कम तापमान के प्रभाव से अधिकांश स्थानों में हल्के से मध्यम कुहासे छा सकते हैं।

किसान वर्तमान मौसम में मटर, टमाटर, धनियां, लहसून एवं अन्य रबी फसलों की झुलसा रोग की निगरानी करें। मौसम तथा वातावरण में नमी होने पर यह बीमारी फसलों में काफी तेजी से फैलती है। इससे फसलों की पत्तियों के किनारे और सिरे से झुलसना शुरू होती है, जिसके कारण पूरा पौधा झुलस जाता है। इस रोग के लक्षण दिखने पर 2.5 ग्राम डाई इथेन एम-45 फफूंदनाशक दवा का प्रति लीटर पानी की दर से घोल बना कर समान रुप से फसल पर दो-तीन छिड़काव दस दिनों के अंतराल पर करें।

नवम्बर माह के शुरू में बोयी गई रबी मक्का की फसल जो 50 से 60 दिनों की अवस्था में हैं। इन फसलों में 50 किलोग्राम नेत्रजन उर्वरक का व्यवहार कर मिट्टी चढ़ाएं। मक्का की फसल में तना बेधक कीट की निगरानी करें। इसकी सूंडिया कोमल पत्तियों को खाती है तथा मध्य कलिका की पत्तियों के बीच घुसकर तने में पहुंच जाती है। तने के मुद्दे को खाती हुई जड़ की तरफ बढ़ती हुई सुरंग बनाती है।

जिससे मध्य कलिका मुरझायी नजर आती है जो बाद में सुख जाती है, एक ही पौधे में कई सूंडिया मिलकर पौधे को खाती है। इससे फसल को यह काफी नुकसान पहुंचाती है। उपचार के लिए फसल में फोरेट 10 जी. या कार्बोफ्यूारान थ्री जी. का सात-आठ दाना प्रति पौधा के गाभा में दें। फसल में अधिक नुकसान होने पर डेल्टामिथ्रिन 250-300 मि.ली. प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।

गेहूं की जो फसल 40 से 50 दिनों की हो गई है, उसमें दूसरी सिंचाई कर 30 किलोगाम नेत्रजन का प्रति हेक्टेयर की दर से उपरिवेशन करें। गहूं की फसल में यदि दीमक का प्रकोप दिखाई दे तो बचाव के लिए क्लोरपायरीफॉस 20 ई.सी. दो लीटर प्रति एकड़ 20-25 किलोग्राम बालू में मिलाकर खेत में शाम के समय छिड़काव एवं सिंचाई करें।

अभी का मौसम आलू की फसल में पिछेती झुलसा रोग के लिए अनुकुल है। इसके बचाव के लिए 20 से 25 ग्राम इंडोफिल एम-45 फफूंदी नाशक दवा का प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें। इस छिड़काव के आठ-दस दिनों के बाद पुनः रीडोमिल दवा का 15 से 20 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें। मटर की फसल में चूर्णिल फफूंदी (पाउडरी मिल्डय) रोग की निगरानी करें, जिसमें पत्तीयों, फलों एवं तनों पर सफेद चूर्ण दिखाई पड़ती है। इस रोग से बचाव के लिए फसल में कैराथेन दवा का एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी अथवा सल्फेक्स दवा का तीन ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें।

ठंड के मौसम में दुधारु पशुओं की देख-भाल एवं पोषण का प्रबंधन सावधानी और उचित तरीके से करना चाहिए। खाने में तेलहन अनाज की मात्रा बढ़ा दें। पौष्टिक हरा चारा, जई एवं बरसीम प्रयाप्त मात्रा में दें। पशुओं को रात में खुले स्थान पर नहीं रखें, बिछावन के लिए सुखी घास या राख का उपयोग करें। दुधारू पशुओं को लिवरफ्लू के संक्रमण से बचाव के लिए धान का पुआल नहीं खिलाएं। तापमान में गिरावट के कारण दुधारू पशुओं के दुध उत्पादन में आई कमी को दूर करने के लिए हरे एवं शुष्क चारे के मिश्रण के साथ नियमित रुप से 50 ग्राम नमक, 50 से 100 ग्राम खनिज मिश्रण प्रति पशु एवं दाना खिलाएं, बिछावन के लिए सुखी घास या राख का उपयोग करें।

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