पलामू : लगातार तीसरे साल सुखाड़ के छाये बादल

पलामू : लगातार तीसरे साल सुखाड़ के छाये बादल

Palamu : सुखाड़ का सामना कर रहे पलामू जिले के लिए यह तीसरा वर्ष है, जब कमजोर मानसून के कारण खरीफ फसलों के आच्छादन पर बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ा है। पलामू जिले में 2024-25 में कुल 1,35,917 हेक्टेयर में धान, मक्का, दलहन, तिलहन तथा मोटे अनाज की खेती का लक्ष्य निर्धारित है। कम वर्षा के कारण 30 जुलाई तक मात्र 37480 हेक्टेयर में ही खरीफ की खेती की गयी है, जो कुल लक्ष्य का 27.58 प्रतिशत है। यह बातें छतरपुर के पूर्व विधायक राधाकृष्ण किशोर ने कही। वे बुधवार को मेदिनीनगर में अपने आवास पर पत्रकारों से बात कर रहे थे।

किशोर ने कहा कि इस वर्ष 51,000 हेक्टेयर में धान की खेती का लक्ष्य निर्धारित है। मानसून के दगाबाजी के कारण 30 जुलाई तक मात्र 76 हेक्टेयर (0.15 प्रतिशत) में ही धान की रोपनी की जा सकी है। 2022-23 में तथा 2023-24 में वर्षा नहीं होने के कारण पलामू जिले में धान की खेती को भारी नुकसान पहुंचा है। परिणाम स्वरूप करीब 2,25,000 टन धान की उपज में हास हुआ था। इससे सजह कल्पना की जा सकती है कि विगत दो वर्षों में पलामू के किसानों की आर्थिक स्थिति कितनी कमजोर हो गयी है। चालू वर्ष में कमजोर तथा सीमांत वर्ग के किसानों ने कर्ज लेकर धान का बीज का क्रय किया था। इस वर्ष भी यदि धान का उपज नहीं होता है तो उनके समक्ष घोर आर्थिक समस्या उत्पन्न हो जाएगी।

इसे भी पढ़ें : आपदा में तीन गांव जमींदोज, अब तक 143 शव मिले

किशोर ने कहा कि वर्ष 2022 में पलामू सुखाड़ की विभिषिका को देखते हुए तत्कालीन कृषि मंत्री बादल पत्रलेख ने कहा था कि सुखाड़ के स्थायी समाधान के लिए मजबूत एक्शन प्लान तैयार किया जाएगा। वैकल्पिक खेती की व्यवस्था की जाएगी। पुराने बांधों का जीर्णोद्धार किया जाएगा लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि तत्कालीन कृषि मंत्री की योजना कागजों में धरी रह गयी। उन्होंने कहा कि झारखंड सरकार को पलामू जिले में कृषि पैटर्न बदलने के लिए अलग से योजना बनाना चाहिए। आम, अमरूद, संतरा, पपीता आदि फलों के उत्पादन पर बल दिए जाने की आवश्यकता है। सीमांत किसानों के लिए दुग्ध उत्पादन, मत्स्य पालन जैसी योजनाओं का लाभ पहुंचाने की जरूरत है। वैकल्पिक खेती के रूप में रागी, ज्वार, बाजरा, सरसो और तीसी के उत्पादन पर फोकस करने की जरूरत है।

admin: