मनोकामना की पूर्ति के लिए 400 फीट ऊंची पहाड़ी पर घुटनों के बल रेंगते हुए दर्शन के लिए पहुंचते हैं श्रद्धालु

Koderma : नवरात्रि में जहां नारी शक्ति मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा होती है, वहीं कोडरमा के नवलशाही थाना क्षेत्र में एक ऐसा मंदिर भी है, जहां मां दुर्गा के10वें स्वरूप की पूजा होती है। इस मंदिर में मां को सिंदूर चढ़ाना वर्जित है। नवरात्रि में जहां नारी शक्ति मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा होती है, वहीं कोडरमा में एक ऐसा मंदिर भी है, जहां मां दुर्गा के10वें स्वरूप की पूजा होती है। 400 फीट ऊंची चंचाल पहाड़ी पर मां चंचालिनी का धाम है, जहां श्रद्धालु मां के दरबार में घुटनों के बल रेंगते हुए अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए मां के धाम में दर्शन के लिए पहुंचते हैं। बीहड़ जंगलों में काले चट्टान के बीच पहाड़ पर मां चंचालिनी विराजमान हैं। चंचाल पहाड़ी कोडरमा में लगभग 40 एकड़ क्षेत्र में फैली हुई है और यहां लगभग पिछले 200 साल से मां की पूजा हो रही है। यह मंदिर कोडरमा जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर है तो वहीं कोडरमा रेलवे स्टेशन से 38 किलोमीटर की दुरी मे है। कोडरमा-गिरिडीह मुख्य मार्ग के कानि केंद मोड़ से 7 किलोमीटर की दूरी पर बीहड़ जंगलों मे है, जहां काले चटानों के मध्य पहाड़ पर मां चंचालिनी विराजमान हैं।

मनोकामना की पूर्ति के लिए 400 फीट ऊंची पहाड़ी पर घुटनों के बल रेंगते हुए दर्शन के लिए पहुंचते हैं श्रद्धालु

मां चंचालिनी का दरबार गुफा में है स्थित है। मां के दरबार में पहुंचने के लिए भक्तों को लगभग पांच मीटर तक घुटनों के बल चलना पड़ता है। 20वीं सदी के नौवें दशक तक लोग इस बीहड़ जंगल में प्रवेश करने से भी डरते थे, लेकिन साल 1956 में झरिया की राजमाता सोनामति देवी ने इस मंदिर तक पहुंचने के लिए एक कच्चा रास्ता बनवाया था। उस दौरान उन्होंने पहाड़ के कठिन रास्ते पर लोहे की दो भारी-भरकम सीढ़ियां लगवाई। हालांकि, श्रद्धालुओं की सुविधा को देखते हुए अब मुख्य सड़क से चंचल पहाड़ी तक पक्की सड़क बनाई गई है। झरिया के राजा को हुई थी पुत्र रत्न की प्राप्ति स्थानीय लोगों के मुताबिक, झरिया के राजा काली प्रसाद सिंह को शादी के कई वर्षों तक संतान सुख नहीं मिल रहा था। उस दौरान मां चंचालिनी के दरबार में मन्नत मांगने के लिए 1956 में अपनी पत्नी सोनामती देवी के साथ मां के दरबार में जंगल के बीच दुर्गम रास्तों से होकर पहुंचे थे और राजा काली प्रसाद सिंह को मां चंचालिनी के आशीर्वाद से पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी।

ऐसी मान्यता है कि जो भी लोग गलत उद्देश्य लेकर इस पहाड़ पर चढ़ाई करते हैं, उन पर भंवरे के द्वारा काट कर घायल कर दिया जाता है। कहा जाता है कि गलत मंशा से पहुंचने वालों को भंवरा डंक मार मारकर लहूलुहान कर बेहोश कर देता है। मां चंचालिनी के दरबार में श्रद्धालु बिना जल ग्रहण किए ही पहाड़ पर चढ़ते हैं और माता की पूजा में प्रसाद के रूप में अरवा चावल और मिश्री चढ़ाते हैं। पूजा स्थल से हटकर दीपक जलने वाली गुफा में ध्यान से देखने पर माता के सात रूप पत्थरों पर उभरे नजर आते हैं। मां चंचालिनी के दरबार में झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, महाराष्ट्र सहित कई अन्य राज्यों से हजारों की संख्या में श्रद्धालु पूजा करने आते हैं।

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