बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में विश्व मृदा दिवस का आयोजन

रांची। मानव, पशु-पक्षी, पौधों, फसलों और जैव विविधता के लिए मिट्टी के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में मंगलवार को विश्व मृदा दिवस का आयोजन किया गया जिसमें वक्ताओं ने मिट्टी को स्वस्थ, जीवंत, और रसायन मुक्त रखने पर जोर दिया।
संयुक्त राष्ट्र ने थाईलैंड के पूर्व राजा भूमिबोल अतुल्यतेज की स्मृति में 5 दिसंबर को विश्व मृदा दिवस घोषित किया है क्योंकि भूमिबोल ने अपना पूरा जीवन मिट्टी की सेहत सुधारने में लगा दिया था। इस वर्ष का थीम ‘मिट्टीएवं पानी, जीवन का स्रोत’ है।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कृषि संकाय के अधिष्ठाता डॉ डीके शाही ने कहा कि एक इंच मिट्टी बनने में 500 साल लगते हैं और मिट्टी में अनगिनत सूक्ष्मजीव भरे पड़े हैं। जिस मिट्टी में कीड़े-मकोड़ों, सूक्ष्मजीवों का वास नहीं है, वह मिट्टी निर्जीव है जो केवल मकान बनाने के काम में आ सकती है। मिट्टी स्वस्थ रहेगी तभी पोषक फसल मिलेगी और मानव का स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। इसके लिए हमें रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग न्यूनतम करते हुए कमपोस्ट, हरी खाद, केंचुआ खाद आदि का इस्तेमाल करना होगा। देश में रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग का औसत प्रति हेक्टेयर 200 किलो है जबकि झारखंड में मात्र 92 किलो है। पंजाब, हरियाणा में प्रति हेक्टेयर लगभग 250 किलो केमिकल फर्टिलाइजर का व्यवहार होता है इसलिए वहां की मिट्टी बंजर बनने के कगार पर है।

डॉ बीके अग्रवाल ने कहा कि भारत में 80% कृषि योग्य भूमि वर्ष पर आधारित है जहां से कुल उपज का 60% हिस्सा प्राप्त होता है। इसलिए हमें वर्षा जल के संरक्षण, शुद्धिकरण और पुनर्चक्रण पर विशेष ध्यान देना होगा ताकि बारिश के पानी का लाभकारी प्रयोग हो सके।
वानिकी संकाय के डीन डॉ एमएस मलिक, निदेशक अनुसंधान डॉ पीके सिंह, पशु चिकित्सा संकाय के डीन डॉ सुशील प्रसाद तथा प्रसार शिक्षा निदेशक डॉ जगरनाथ उरांव ने भी मिट्टी की सेहत और पोषक तत्वों की वृद्धि के लिए जैविक खेती अपनाने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि रसायनों का प्रयोग बढ़ने से गौरैया कौवा और गिद्ध के अस्तित्व पर भी संकट आ रहा है।
आयोजन इंडियन सोसाइटी ऑफ़ सॉइल साइंस एवं राष्ट्रीय कृषि उच्चतर शिक्षा परियोजना (नाहेप) द्वारा किया गया था।
कार्यक्रम का संचालन एमएससी की छात्रा पूनम ने किया।

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