Ranchi। भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल शाह देव ने मंगलवार को झामुमो के पत्रकार वार्ता पर पलटवार करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार के पिछले 10 वर्षों के शासनकाल में देश की दिशा और दशा बदल गई। 10 वर्ष पूर्व भारत विश्व का 11वां सबसे बड़ा अर्थव्यवस्था था। आज भारत पांचवां सबसे बड़ा अर्थव्यवस्था हो गया है और अगले तीन वर्षों में तीसरे स्थान तक पहुंचाने का लक्ष्य है।
प्रतुल ने कहा कि 500 वर्षों के बाद कांग्रेस के पुरजोर विरोध के बावजूद मोदी जी के कार्यकाल में रामलला अपने भव्य मंदिर में विराजमान हुए। कश्मीर से 370, 35 ए , ट्रिपल तलाक हटाना यह सब बड़ी उपलब्धियां थी। प्रतुल ने कहा कि पिछले 10 वर्ष में उज्ज्वला योजना ने बहनों के आंखों से आंसू को पोछा। पीएम योजना के अंतर्गत 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन मुहैया कराया जा रहा है।
आवास योजना ने चार करोड़ गरीबों को आवास उपलब्ध कराया। आयुष्मान योजना के तहत हर गरीब को भी बेहतर अस्पताल में इलाज कराने की सुविधा मिली। जनधन योजना के अंतर्गत आदिम जनजातियों को मुख्य धारा में जोड़ने के लिए 24000 करोड़ का बजट का प्रावधान हुआ। अपने देश में 200 करोड़ कोरोना के वैक्सीन के टीके लोगों को मुफ्त लगवाए गए और 100 से ज्यादा देशों में स्वदेशी टीके भेजे गए। 25 करोड़ लोगों को गरीबी रेखा से ऊपर उठाया गया। जल जीवन मिशन के अंतर्गत 14 करोड़ ग्रामीण घरों में नल से जल उपलब्ध कराया गया। प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना के अंतर्गत 11 करोड़ किसानों को 2.6 लाख करोड़ की सहायता राशि उपलब्ध कराई गई।
प्रतुल ने कहा कि इसके उलट हेमंत सरकार पार्ट-1 और पार्ट-2 सिर्फ और सिर्फ भ्रष्टाचार के कारण देश में जानी गई। 70,000 करोड़ का घपला, घोटाले का आरोप लगा। देश के इतिहास में पहली बार एक मुख्यमंत्री 40 घंटे तक फरार रहा। आज झारखंड मुक्ति मोर्चा की सरकार सिर्फ भ्रष्टाचार और ट्रांसफर पोस्टिंग के लिए जानी जाती है।
प्रतुल ने झामुमो को चुनौती देते हुए कहा कि वह अपनी सरकार के ‘शोहरत’ की कोई तीसरी वजह बता दें।उपलब्धियां इनके खाते में शून्य है। प्रतुल ने कहा कि यदि हेमंत सोरेन निर्दोष है तो पिछले दो महीना से इन्होंने जमानत के लिए किसी न्यायालय का रुख क्यों नहीं किया? सिर्फ झारखंड मुक्ति मोर्चा के सार्वजनिक मंचों में एक आदिवासी मुख्यमंत्री को जेल डालकर बोलने से जनता प्रभावित नहीं होगी। यदि वे निर्दोष हैं तो इनको अभी तक किसी अदालत से प्रारंभिक राहत भी क्यों नहीं मिली?