बेगूसराय। बिहार की औद्योगिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक राजधानी बेगूसराय अब कृषि के क्षेत्र में भी प्रगति के पथ पर अग्रसर है। यहां के प्रगतिशील किसान नई-नई तकनीक के माध्यम से ऐसी खेती कर रहे हैं जो कि आज तक देश के प्रगतिशील राज्य और विदेशों में ही होती थी।
बेगूसराय के किसान ताइवान पिंक अमरूद की खेती कर धमाल मचा रहे है। एमबीए उत्तीर्ण मंझौल निवासी विश्वजीत सिंह शहर से पांच किलोमीटर दूर भर्रा गांव में दो एकड़ जमीन पर एक हजार ताइवान पिंक अमरूद का पौधा लगाया था। जिसमें 960 पौधा जीवित रहकर फल दे रहा है। विश्वजीत सिंह एमबीए करके दिल्ली में अपनी कंपनी चला रहे थे।
इसी दौरान विश्वजीत लगा घर जाकर परिवार के साथ रहकर अपनी जमीन पर नई तकनीक के साथ खेती एवं व्यवसाय करें। उन्होंने अमरुद के संबंध में जानकारी लेकर देश दुनिया के सबसे अच्छे बीड ताइवान पिंक अमरूद का वृक्ष मध्यप्रदेश रतलाम से मंगवा कर लगाया। जिसमें 960 वृक्ष जीवित बच गया तथा फल रहा है।
अमरूद के फल का वजन तीन सौ से सात सौ ग्राम का हो रहा है। वृक्ष लगाने के 13 माह के बाद फल देना शुरू हो गया। दो एकड़ में लागत करीब डेढ़ लाख से पौने दो लाख रुपये की हुई है और लागत दुगनी कमाई होनी तय है। प्रत्येक दिन दो सौ किलो अमरूद बाजार में जा रहा है। बाजार में यह अमरूद में 120 रुपये किलो बिकता है।
सबसे बड़ी बात है कि यहां अमरूद की खेती रासायनिक खाद और दवाई से दूर रखकर किया गया है। खेती पूर्ण रुपेण जैविक तरीके से गोबर से किया जा रहा है। इसके कारण छोटे फल देने के साथ ही उसपर गोभा फुड नेट कवर लगाया जाता है। फिर उसके उपर से सिलकोन कवर लगाया जाता है, जिससे फल शत-प्रतिशत सुरक्षित रहे।
सिंचाई के लिए डीप एरीग्रेशन की व्यवस्था है, दस मिनट में सभी पौधे की जड़ में पानी पहुंच जाता है और पानी की बर्बादी नहीं होती है। विश्वजीत के भाई रौशन सिंह ने बताया कि यह अमरूद काफी मीठा है। केवाल मिट्टी के कारण इसकी उपज भी अच्छी होगी। बेगूसराय में ही मांग इतनी ज्यादा है कि हम पूर्ति नहीं कर पाते है। फल साल में दो बार खाने लायक होता है।
पहला फल मई-जून माह में और दूसरा फल अक्टूबर-नवम्बर माह में होता है। बेगूसराय में इस किस्म के अमरूद की खेती पहली है। खेती व्यवसायिक दृष्टिकोण से तकनीक के साथ किसानों को करने की जरूरत है। रसायनिक खाद से मिट्टी को बचाएं, जिससे लंबे समय तक आपकी खेती कम लागत में होती रहेगी। अभी तक सरकारी किसी तरह का कोई मदद नहीं मिला है।
सामाजिक कार्यकर्त्ता प्रो. संजय गौतम ने बताया कि कृषि विभाग को चाहिए ऐसे किसानों को प्रोत्साहित करे। किसान के बीच जाकर नई तकनीक खेती का अनुभव का अदान-प्रदान करें। इसके लिए गोष्ठी आयोजित कर किसान की समस्या को सुनें, जिससे बिहार के किसान आर्थिक और मानसिक रुप से ताकतवर हो सकें। इस प्रकार के अद्भुत फलों की खेती को बढ़ावा मिले तो बेगूसराय एग्रीकल्चर हब बन सकता है।