खूंटी। भले ही अभी फरवरी का महीना है और ऋतुराज बसंत खत्म होने को है। लेकिन फरवरी महीने में ही जिस प्रकार की गर्मी पड़ने लगी है, उससे इतना तो एहसास हो ही जाता है कि प्रकृति के साथ लगातार हो रही छेड़छाड़ के कारण बसंत हमसे रूठ गया है। फरवरी में ही गर्मी का आलम यह है कि लोग गर्म कपड़ों से तौबा करने लगे हैं। फरवरी महीने कें अंतिम सप्ताह तापमान में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। जानकारों का कहना है कि पेड़ों और जंगलों की अंधाधुंध कटाई, नदियों से बालू और पहाड़ों से पत्थरों के उत्खनन के कारण ही मौसम में परिवर्तन देखा जा रहा है। बुजर्ग बताते हैं कि पहले झारखंड में मई महीने में भी इतनी गर्मी नहीं पड़ती थी, जितनी गर्मी अब फरवरी-मार्च महीने में पड़ती है।
बारिश नहीं होने से झड़ रहे हैं आम के मंजर
जनवरी-फरवरी महीने में एक दिन भी बारिश नहीं होने से आम के मंजर सूखकर झड़ने लगे हैं। साथ ही मधुवा रोग का प्रकोप भी बढ़ता जा रहा है। ज्ञात हो कि इस बार पूरे इलाके में आम के पेड़ मंजरों से लद गए हैं, लेकिन बारिश नहीं होने से आम की फसल को नुकसान पहुंच रहा है। तोरपा स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि वैज्ञानिक डॉ राजेन चौधरी कहते हैं कि यदि जल्द बारिश नहीं हुई, तो इसका असर आम की पैदावार पर पड़ना तय है। उन्होंने किसानों को सलाह दी कि वे हर हाल में आम के मंजरों में पानी और दवा का छिड़काव करें।
सूखने लगे नदी-नाले और तालाब
गर्मी के कारण तेजी से भूगर्भ का जलस्तर तेजी से घटता जा रहा है। इसके कारण कई इलाकों में जल संकट की स्थिति उत्पन्न हो गई है। कई इलाकों के कुएं, तालाब और नदियां सूख चुकी हैं। चापानलों से भी पानी गायब है। झारखंड की अधिकांश नदियां बरसाती हैं। यही कारण है कि मॉनसून के विदा होते ही क्षेत्र की नदियां सूख्ने लगती हैं। लोगों को इस बात का भय सता रहा है कि फरवरी में जब जल संकट गहरा रहा है, तो मई-जून के महीने में क्या होगा।
तोरपा के किसान और तोरपा पूर्वी पंचायत के उप मुखिया राजू साहू कहते हैं कि जलस्रोतो के सूखने का सबसे अधिक प्रभाव पशु-पक्षियों पर पड़ेगा। मनुष्य तो कुओं और चापानलों से अपनी प्यास बुझा लेगा, लेकिन नदी-नालों और तालाबों के सूख जाने से बेजुबान पशु-पक्षी क्या करेंगे। उन्होंने कहा कि अभी भी हम जल संरक्षण के प्रति सचेत नहीं हुए, तो आनेवाले समय में लोगों का क्या होगा, कहना मुश्किल है।