बेगूसराय। नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार और बिहार सरकार की सकारात्मक उद्योग नीति के कारण अब बड़े पैमाने पर युवा रोजगार नहीं खोज रहे हैं। बल्कि स्वरोजगार की ओर प्रेरित होकर खुद लोगों को रोजगार दे रहे हैं। कोरोना काल के बाद बेगूसराय में छोटे-छोटे दो सौ से भी अधिक स्वरोजगार शुरू किए गए।
लेकिन अब यहां के एक युवा ने ऐसा स्टार्टअप किया है जो बिहार के लिए नई बात है। बेगूसराय जिले के बरौनी प्रखंड स्थित पिपरा देवस निवासी निशांत रंजन ने केला से चिप्स बनाने की फैक्ट्री लगाई है। फैक्ट्री भी पूरी तरह से ऑटोमेटिक और अत्याधुनिक तकनीक से युक्त है। इसके बाद निशांत ना सिर्फ बेगूसराय के पहले स्टार्टअप बन गए हैं, बल्कि उन्होंने शुरुआती दौर में 20 लोगों को रोजगार दिया है।
उद्योग धंधा शुरू करने के लिए सरकार द्वारा प्रेरित करने पर बेगूसराय में जब बड़े पैमाने पर छोटे बड़े रोजगार शुरू किए गए तो निशांत ग्वालियर में बीएससी की पढ़ाई कर रहे थे। उनका ध्यान स्वरोजगार की ओर गया तो बेंगलुरु में कार्यरत अपने इंजीनियर दोस्त से बात की। बेंगलुरु के विभिन्न औद्योगिक प्रतिष्ठानों का जायजा लिया। गुजरात जाकर भी कई स्टार्टअप देखे।
इसी दौरान केला के चिप्स पर नजर गई, अपने पिता से बात किया। पिता को भी ले जाकर घुमाया, इसके बाद गांव में ही फैक्ट्री लगाने की सोची। लखनऊ से बनाना बैफर इलेक्ट्रिक कड़ाही, ड्रायर, मसाला मिक्सिंग और ऑटोमैटिक पैकिंग मशीन लाया। करीब 26 लाख रुपए की लागत से उन्होंने अभय एग्रो चिप्स प्राइवेट लिमिटेड के नाम से अपने स्वरोजगार की शुरुआत की।
प्रत्येक महीने 40 से 50 हजार पैकेट चिप्स बना रहे हैं। तीन माह की वैलिडिटी वाला चिप्स मसाला युक्त बनाया जा रहा है। इसमें उन्हें करीब 10 से 15 प्रतिशत की बचत हो रही है। निशांत रंजन ने बताया कि आज लोग पढ़-लिखकर रोजगार खोज रहे हैं। लेकिन सभी लोगों को रोजगार देना सरकार से संभव नहीं है। हम चाहे तो खुद का रोजगार शुरू कर गांव में ही लोगों को रोजगार दे सकते हैं।
इसी उद्देश्य से हमने बेंगलुरु और गुजरात सहित देश के विभिन्न हिस्सों में जाकर जानकारी लिया। उसमें मुझे केला का चिप्स बिहार के लिए अच्छा स्टार्टअप लगा। क्योंकि अभी बिहार में कहीं भी केला का चिप्स नहीं बनता है। दूसरे प्रदेशों से ही सप्लाई होती है। करीब 26 लाख की लागत से स्टार्टअप करने के बाद अब विभिन्न विभागों से संपर्क कर रहे हैं। हमारा उद्देश्य तीन से चार सौ लोगों को अपने गांव में ही रोजगार देना है। जिससे वह घर में रहकर अर्थोपार्जन करें।