Ranchi : शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ किताबी ज्ञान तक सीमित नहीं रह गया है, अब यह रचनात्मकता, आत्म-प्रकाश और जीवन मूल्यों का माध्यम बन चुका है। रांची के पास स्थित प्रस्तावित उच्च विद्यालय, सुकुरहुटू इस बदलाव की मिसाल बनकर उभर रहा है, जहाँ बच्चों की कल्पनाओं को रंगों और रेखाओं के माध्यम से पंख मिल रहे हैं।
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इन दिनों विद्यालय में विशेष कला और हस्तकला प्रशिक्षण सत्रों का आयोजन हो रहा है। यहाँ बच्चे न सिर्फ चित्र बनाना सीख रहे हैं, बल्कि अपने विचारों को व्यक्त करने की क्षमता, आत्म-अनुशासन और सौंदर्यबोध जैसे महत्वपूर्ण जीवन कौशल भी विकसित कर रहे हैं।
कक्षा में बिखरे रंग और मुस्कुराहटें
कलाकारों जैसे उत्साह के साथ बच्चे ब्रश, रंग और क्राफ्ट सामग्री को अपने हाथों से आकार दे रहे हैं। उनकी आँखों में उत्साह और हाथों में कल्पना की उड़ान दिखाई देती है। शिक्षकों का ध्यान केवल तकनीकी ज्ञान देने तक सीमित नहीं है, वे बच्चों को कला के माध्यम से सोचने, महसूस करने और जीवन को देखने की नई दृष्टि सिखा रहे हैं।
प्रधानाचार्य की दूरदृष्टि
विद्यालय की प्रधानाचार्य का मानना है कि शिक्षा केवल परीक्षा पास करने का जरिया नहीं होनी चाहिए। कला बच्चों को स्वतंत्र सोच, संवेदनशीलता और आत्म-अभिव्यक्ति का माध्यम देती है, जो उन्हें भावनात्मक रूप से भी मजबूत बनाती है।
शिक्षकों और छात्रों की रचनात्मक साझेदारी
कक्षा में शिक्षक जब ब्लैकबोर्ड पर रेखाचित्र और रंगों की तकनीक समझाते हैं, तो बच्चे उन्हें ध्यान से देख सुनकर अपने मन की कल्पनाओं को कागज़ पर उकेरते हैं। किसी की तस्वीर में पहाड़ की सुंदरता है, तो कोई अपने गाँव की झलक चित्रित कर रहा है।
ग्रामवासियों और अभिभावकों की सकारात्मक प्रतिक्रिया
विद्यालय की इस पहल ने सिर्फ बच्चों को ही नहीं, बल्कि अभिभावकों और ग्रामवासियों को भी गहराई से प्रभावित किया है। ग्रामीण विकास समिति के सदस्यों ने इसे समग्र शिक्षा की दिशा में एक प्रेरणादायक कदम बताया। उनका कहना है कि जब बच्चे रंगों के माध्यम से संवाद करते हैं, तो वे शब्दों से कहीं अधिक गहराई से सीखते हैं।








