Ranchi : तरंगा गांव में बनी ₹2.5 लाख की सीमेंटेड नाली ढाई महीने भी नहीं टिक सकी। पहली ही बारिश में नाली ढह गई, जिससे न केवल निर्माण कार्य की गुणवत्ता पर सवाल उठे हैं, बल्कि पूरे विकास तंत्र की सच्चाई भी उजागर हो गई है।
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यह नाली 15वें वित्त आयोग की योजना के अंतर्गत बनाई गई थी, लेकिन जैसे ही बारिश ने दस्तक दी, नाली की दीवारें दरक गईं, और कुछ ही समय में पूरी संरचना मिट्टी में मिल गई। जिस निर्माण को सालों तक टिकना चाहिए था, वह ढाई महीने में ही ध्वस्त हो गया।
स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि इसमें घटिया निर्माण सामग्री का इस्तेमाल हुआ है और कोई तकनीकी निगरानी नहीं की गई। उनका कहना है, “ये सिर्फ नाली नहीं ढही है, हमारी उम्मीदें और प्रशासन की ईमानदारी ढही है।” कई ग्रामीणों ने इस मामले की जांच और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की है।
गांव के लोगों ने आरोप लगाया कि निर्माण कार्य में ईंट, सीमेंट और ग्रेडेड मटेरियल की जगह कमज़ोर और सस्ती सामग्री का उपयोग किया गया। साथ ही, निर्माण की देखरेख करने वाले अभियंता और पंचायत स्तर के अधिकारी लापरवाही बरतते रहे।
तरंगा की यह टूटी हुई नाली अब एक प्रतीक बन गई है—ऐसे विकास कार्यों का जो कागज़ों पर तो मजबूत दिखते हैं, लेकिन जमीनी सच्चाई में पहली बारिश भी सह नहीं पाते।
प्रशासन से अब जवाब मांगा जा रहा है—क्या विकास कार्यों में गुणवत्ता की निगरानी नहीं की जाती? क्या हर योजना में भ्रष्टाचार की दरारें छिपी होती हैं?
ग्रामीणों की आवाज़ बुलंद है, वे कहते हैं, “हमें नाली नहीं, जवाब चाहिए। अगर यही हाल रहा, तो विकास की हर योजना भ्रष्टाचार के नाले में बह जाएगी।”
यह मामला झारखंड में हो रहे स्थानीय विकास योजनाओं की पारदर्शिता और कार्यान्वयन की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़ा करता है। प्रशासन के लिए यह एक चेतावनी है कि अब सिर्फ टेंडर नहीं, जिम्मेदारी भी तय करनी होगी।